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Thursday, March 7, 2024

ठाणे लोकसभा सीट पर अपनी दावेदारी मजबूत करने में जुटे विनय सहस्त्रबुद्धे

 


भाजपा को सीट मिली तो संजीव नाईक भी दावेदार 

मनीष अस्थाना 
नवी मुंबई। ठाणे लोकसभा चुनाव जीतने के लिए किसी भी प्रत्याशी के लिए नवी मुंबई की दोनों विधानसभा सीटें खासी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों सीटें किसी भी प्रत्याशी की हार जीत में अपनी निर्णायक भूमिका अदा करेंगी , इसीलिए भाजपा के दोनों दावेदार पूर्व सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे और गणेश नाईक के पुत्र तथा पूर्व सांसद संजीव नाईक यह दोनों लोग नवी मुंबई में अपना जनसम्पर्क बढ़ाते हुए अपनी अपनी दावेदारी मजबूत करने में लगे हुए हैं। हालांकि ठाणे लोकसभा सीट एकनाथ शिंदे की शिवसेना को मिलेगी या फिर भाजपा के खाते में जाएगी इस बात का पता सीट बटवारे के बाद चलेगा। लेकिन इन दोनों दावेदारों ने अपना जनसंपर्क मजबूत करने का काम शुरू कर दिया है। 

उल्लेखनीय है कि विनय सहस्रबुद्धे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हुए हैं और एक बार राज्यसभा से सांसद भी रह चुके हैं , साथ ही अनुभवी व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं जबकि भाजपा के दूसरे दावेदार संजीव नाईक नवी मुंबई के दिग्गज नेता माने जाने वाले गणेश नाईक के पुत्र हैं , संजीव नाईक भी एक बार एनसीपी के टिकट पर ठाणे लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद रह चुके हैं। उल्लेखनीय है कि राज्य में जब एनसीपी और कांग्रेस की सरकार थी और गणेश नाईक मंत्री हुआ करते थे उस समय नवी मुंबई में नाईक परिवार की तूती बोला करती थी ठाणे जिले के अन्य हिस्सों में भी गणेश नाईक की गिनती दिग्गज नेताओं में की जाती थी। लेकिन 2014 के बाद गणेश नाईक का राजनीतिक साम्राज्य में दरारें पड़नी शुरू हो गयी। उनके बहुत से अपने लोगों ने नाईक परिवार से किनारा कर लिया। 

2014 की हार के बाद गणेश नाईक ने 2019 में भाजपा के साथ जाने का निर्णय लिया और अपने पूरे दलबल के साथ भाजपा में चले गए और ऐरोली से विधानसभा का चुनाव लड़ा। हालांकि उस समय गणेश नाईक बेलापुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें बेलापुर से टिकट नहीं मिला जबकि ऐरोली विधानसभा सीट से उनके पुत्र संदीप नाईक को पार्टी ने टिकट दिया लेकिन संदीप नाईक के मना करने के बाद ऐरोली विधानसभा से गणेश नाईक को टिकट दिया गया और वे जीत भी गए। जीतने के बाद भाजपा में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हुए दिखाई देने लगे। 2022  में शिवसेना में बगावत होने के बाद जब राज्य में भाजपा - शिवसेना एकनाथ शिंदे की सरकार बनी तो उन्हें पूरा विश्वास था कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिला बल्कि उन्हें नवी मुंबई में संगठन को मजबूत करने का काम दिया गया। 

जिस दिन से गणेश नाईक ने भाजपा का झंडा पकड़ा था उसी दिन से नवी मुंबई भाजपा में दो गुट बन गए थे एक गुट गणेश नाईक का तथा दूसरा गुट मंदा म्हात्रे का , यह गुटबाजी आज भी नवी मुंबई भाजपा में बरक़रार है। हालांकि कुछ लोगों के विरोध के बाद भी गणेश नाईक अपने बेटे संदीप नाईक को नवी मुंबई भाजपा का अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो गए इसके बाद पूरा नाईक परिवार पार्टी को मजबूत करने के सहारे अपनी खोई राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने में जुट गया साथ ही संजीव नाईक को बतौर ठाणे लोकसभा प्रत्याशी के रूप में पेश किया जाने लगा। हालांकि राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा की  जा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद का विरोध करते हैं ऐसे में जब एक ही परिवार का कोई व्यक्ति विधायक हो और एक पार्टी का जिला अध्यक्ष तो फिर उसी परिवार के व्यक्ति को लोकसभा का टिकट कैसे मिल सकता है ? यही बात भाजपा के दूसरे दावेदार विनय सहस्रबुद्धे के लिए संजीवनी साबित हो सकती है। 

वैसे नवी मुंबई में जो लोग एकनाथ शिंदे की शिवसेना के साथ है वे लोग गणेश नाईक के कट्टर विरोधी है वे लोग किसी भी कीमत पर नाईक परिवार को समर्थन नहीं करेंगे , चर्चा है कि यदि भाजपा संजीव नाईक को टिकट दे भी देती है तो नाईक विरोधी उद्धव ठाकरे के लिए काम कर सकता है यदि ऐसा होता है तो भाजपा को एक सीट का नुकसान झेलना पड़ेगा। सूत्रों का कहना है कि भाजपा इन सभी पहलुओं पर भी गंभीरता पूर्वक विचार कर रही है। माना जा रहा है इस आंतरिक विरोध का फायदा विनय सहस्रबुद्धे को मिलेगा इसलिए वे नाईक के साथ साथ मंदा म्हात्रे के कार्यक्रमों में शिरकत करते हुए दिखाई देने लगे हैं। 
 

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