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Friday, January 26, 2024

बगावत में उलझी महाराष्ट्र की राजनीति

   बगावत में उलझी महाराष्ट्र की राजनीति 

मनीष अस्थाना 
लगभग दो दशक पहले महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था , लेकिन विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार ने कांग्रेस से बगावत कर अपनी अलग पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बना ली लेकिन जब शरद पवार को लगा कि वे अपने दम पर महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पाएंगे तब उन्होंने कांग्रेस पार्टी के साथ समझौता कर गठबंधन कर लिया और महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार भी बनाई और कांग्रेस के छोटे भाई की भूमिका में आ गए ।

  शिवसेना में भी पारिवारिक सत्ता संघर्ष की लड़ाई तेज हो गई जिसकी वजह से शिवसेना में बगावत करने की शुरुआत छगन भुजबल और नारायण राणे से शुरू हुई । छगन भुजबल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और नारायण राणे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया । उसके बाद शिवसेना से गणेश नाईक , संजय निरुपम जैस कई लोग अलग हो गए , यह सब उस समय हो रहा था जब बाल ठाकरे जीवित थे । शिवसेना में हुई इस बगावत का असर कुछ खास अधिक नहीं पड़ा उस समय बाल ठाकरे ने पार्टी को तो संभाल लिया, लेकिन पार्टी के बिखराव को रोक नहीं पाए , जब उन्होंने अपने जीते जी पार्टी की कमान अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को सौपी तो इसके सबसे बड़े दावेदार यानि कि बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिवसेना से किनारा कर अपनी पार्टी महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का गठन कर लिया , हालांकि राज ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ कर नही पाए वे महाराष्ट्र की राजनीतिक सत्ता का हिस्सा तक बनने में कामयाब नही हो सके ।
1995 में शिवसेना और भाजपा महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सफल हो गई थी इस बार शिवसेना ने विधानसभा की 73 सीटें जीती थी जबकि भाजपा 63 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, राज्य में भाजपा शिवसेना सरकार बनने के बाद शिवसेना के भीतर आंतरिक मतभेद भी सामने आने लगे और पार्टी के दिग्गज नेता शिवसेना से बाहर जाने लगे जिसकी वजह से शिवसेना कमजोर हो गई। 1999 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना भाजपा मिलकर भी सरकार नहीं बना पायी। साल 2009 के विधानसभा चुनाव हुए और एक बार फिर कांग्रेस और एनसीपी ने महाराष्ट्र में सरकार बनाई। उस समय महाराष्ट्र में भाजपा छोटे भाई की भूमिका में थी लेकिन भाजपा की लगातार यही कोशिश रही कि वह बड़े भाई की भूमिका में आए । 2014 में भाजपा की यह इच्छा पूरी भी हो गई , मोदी की लहर के चलते भाजपा ने 122 सीटों पर जीत हासिल की और शिवसेना मात्र 63 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी। शिवसेना और भाजपा में गठबंधन होने की वजह से यह गठबंधन की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। 2019 में शिवसेना - भाजपा गठबंधन ने फिर से जीत हासिल की इस बार भाजपा को 105 सीटों पर जीत हासिल हुई और शिवसेना मात्र 56 सीट ही जीत सकी। 
2019 के विधानसभा चुनाव में कम सीटें पाने के बावजूद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद शिवसेना को देने की मांग की , जिसे भाजपा के शीर्ष नेताओं ने ख़ारिज कर दिया। शिवसेना की मांग ख़ारिज किए जाने की मांग को उद्धव ठाकरे पचा नहीं पाए और भाजपा से अपना नाता तोड़ लिया। इसके बाद महाराष्ट्र में शिवसेना - राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  तथा कांग्रेस ने मिलकर महाविकास आघाडी की स्थापना की जिसमें मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी उद्धव ठाकरे को दी गयी। एक समय ऐसा भी था जब शिवसेना भाजपा सरकार का रिमोट कंट्रोल मातो श्री में हुआ करता था लेकिन इस बार यह रिमोट कंट्रोल शरद पवार के हाथ में आ गया था ,इस तरह के गठबंधन को लेकर शिवसेना नेताओं में आंतरिक मतभेद था , हालांकि इस गठबंधन से शरद पवार की पार्टी एनसीपी में भी सब कुछ ठीक नहीं था शायद इसी लिए शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने बेहद गोपनीय तरीके से देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार का गठन कर लिया और उपमुख्यमंत्री बन गए लेकिन अजित पवार उस वक्त एनसीपी के विधायकों को तोड़ने में कामयाब नहीं हो पाए थे, इसलिए उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार बहुमत साबित करने से पहले ही गिर गयी। यह टीस अजीत पवार के मन में घर कर गई ।
महाविकास आघाडी की सरकार ढाई साल तक किसी न किसी तरह से चलती रही लेकिन जून 2022 को अचानक शिवसेना से पार्टी के सबसे कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे ने विद्रोह कर दिया , एकनाथ शिंदे ने जिस समय उद्धव ठाकरे से विद्रोह किया वे उस समय सरकार में कैबिनेट मंत्री थे , एकनाथ शिंदे ने सिर्फ विद्रोह ही नहीं किया बल्कि शिवसेना पार्टी और चुनाव चिन्ह पर भी अपना दावा ठोंक दिया। एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली चुनाव चिन्ह भी हथिया लिया और पार्टी पर भी कब्ज़ा कर लिया। सरकार संवैधानिक है  या असंवैधानिक, इस बात की लड़ाई अभी चल रही है। उद्धव इस डैमेज कंट्रोल को सुधारने में लग गए तब तक उधर शरद पवार के भतीजे अजीत पवार भी इंतजार नहीं कर पाए , उन्होंने भी अपने चाचा शरद पवार से बगावत कर दी और एनसीपी के एक बड़े गुट को अपने साथ लेकर एकनाथ शिंदे - भाजपा की सरकार में शामिल हो गए। अजित पवार ने भी एनसीपी तथा चुनाव चिन्ह पर अपना दावा ठोक दिया और कहा कि उनका गुट ही असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी है , हालांकि पार्टी पर अधिकार को लेकर चाचा भतीजे का संघर्ष चल रहा है। पिछले दो सालों से महाराष्ट की राजनीति बगावत में ही उलझ कर रह गयी है। 
पिछले कुछ समय से राजनीति के गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा की जा रही है कि शिवसेना तथा एनसीपी में हुई बगावत का फायदा किसे मिलेगा ? स्वाभाविक है इसका राजनीतिक लाभ सबसे अधिक भाजपा को ही मिलेगा , क्योंकि कुछ समय के बाद लोकसभा चुनाव होने वाले है ऐसे में भाजपा को छोड़कर किसी भी पार्टी का संगठन मजबूत नहीं है। उद्धव ठाकरे अपने गुट वाली शिवसेना को मजबूत करने में लगे हुए हैं , एकनाथ शिंदे की हालत भी कुछ वैसी ही है एकनाथ शिंदे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे अपनी राजनीतिक नौका पार लगाना चाहते है। शरद पवार की एनसीपी भी टूटकर पूरी तरह से बिखर चुकी है पार्टी का संगठनात्मक ढाँचा टूट चुका है जिसे इतनी जल्दी तो सुधारा नहीं जा सकता है। अजीत पवार वाले गुट की हालत भी कुछ वैसी ही है उनके पास भी अभी मजबूत संगठनात्मक ढांचा नहीं है ऐसे में चुनाव के समय परेशानी उठाना स्वाभाविक है , क्योंकि कार्यकर्ता अभी इस पशोपेश में है कि वह किसके साथ जाय ? कार्यकर्ता अभी तक तय नहीं कर पा रहा है वह दुविधा में फंसा हुआ है। 
ऐसे में यदि बात भाजपा की करें तो वह अन्य दलों की अपेक्षा काफी मजबूत स्थिति में है , जिस तरह से तीन राज्यों में चुनाव परिणाम आए हैं उसे देखने के बाद भाजपा में कोई भी बगावत का सुर नहीं अलापेगा चाहे उसका टिकट कटे या फिर मिले। क्योंकि तीन राज्यों में कई लोगों के टिकट शीर्ष नेताओं द्वारा काटे गए लेकिन एक दो अपवाद को छोड़कर किसी ने भी बगावत का झंडा बुलंद करने की हिम्मत नहीं दिखाई ठीक उसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र में भी बनेगी चुनाव चाहे लोकसभा के हो या फिर विधानसभा के हो। भाजपा अपने नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी है। 

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