मनीष अस्थाना
इन दिनों पूरा देश जहाँ महेगाई की मार से परेसान है वहीँ हमारे देश के संसद अपने वेतन को लेकर परेशान दिखाई दे रहे है जो लोग संसद मेंवेतन बढ़ाने की मांग कर रहें हैं वे सभी लोग आज करोडो की अकूत सम्पति के मालिक बन कर बैठे हैं ऐसे लोगों को भला देश से वेतन लेने की क्या जरुरत है कहने के लिए तो यह लोग जनता के सेवक है जन सेवा के नाम पर यह लोग वैसे भी करोडो कमाते है । आज संसद में जितने भी जन प्रतिनिदी है उनमें से ९० प्रतिसत लोग करोड़ों के मालिक हैं इसके बावजूद भी इन लोगों को प्रति माह ६५ हजार का वेतन देने निर्णय लिया गया है इसके आलावा कई प्रकार के भत्ते दिए जा रहें है जो कुल मिलाकर दो लाख के पार हो जाएगी .माना जा रहा है इस वेतन वृद्धी के बात भारत की गिनती एक ऐसे देश में की जाने लगेगी जहाँ पर सबसे जादा वेतन जन प्रतिनिधयों को दिया जाता है ।
हैरानी वाली बात तो यह है इस मामले में सभी लोग एकजुट हो गए चाहे वह विपच हो या सत्ता पक्छ के संसद diyaहो सब एक साथ दिखाई दिए । यदि इतनी एकजुटता अन्य मामलों में दिखाई दे तो शायद आज वे समस्याएँ नहीं रहेंगी जिनका रोना खुद यही लोग रोतें रहेतें है ।
अभी कुछ दिनों पहले देश में करोडो तन अनाज बर्बाद हो गया है जिस पर संसद में थोड़ी देर के लिए शोर शराबा हुआ लेकिन परिणाम कुछ नहीं हुआ । लाखो लोग भूखे मरते रहे और सर्कार व् सर्कार के प्रतिनिधि सोते रहे । लेकिन जब फायदा खुद का दिखाई दिया तो सभी एक जुट हो गए शायद यही देश का दुर्भाग्य है.
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