राहुल गांधी के सामने संगठन मजबूत करने की सबसे बड़ी चुनौती
किस तरीके से जीतेंगे अपने कार्यकर्ताओं का विश्वास
मनीष अस्थाना
2014 के लोकसभा के चुनाव तथा महाराष्ट
के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी पार्टी के कोई करिश्मा
नहीं दिखा पाये । लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र में हुये विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस
पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा । इसके बाद जितने भी प्रदेशों में चुनाव हुये वहाँ
पर भी राहुल गांधी अपना कोई करिश्मा नहीं दिखा पाये । सीधे शब्दों में यदि कहा जाय
तो नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी कहीं भी टिक नहीं पाये जिसकी वजह से कांग्रेस
के गुब्बारे की हर जगह हवा निकल गयी । कई प्रदेशों में कांग्रेस की हवा निकलने के बाद
कई लोगों ने राहुल गांधी को सीधे तौर पर जिम्मेदार माना जबकि कुछ चाटुकार लोगों ने
राहुल गांधी का बचाव भी किया और कहा कि संगठन का कमजोर होना उनकी हार की प्रमुख वजह
है ।
वैसे देखा जाय तो कांग्रेस की हार
की शुरुआत उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा से हो चुकी थी । उत्तर प्रदेश के विधानसभा
चुनाव में जिस समय कांग्रेस की दुर्गति हुई थी उसके लिए संगठन को ही कमजोर माना गया
था ,लेकिन कांग्रेसी नेताओं ने इससे कोई सबक नहीं लिया था उसके बाद
न तो संगठन को मजबूत करने के कोई प्रयास किए गए और न ही कार्यकर्ताओं की समस्याओं को
जानने का प्रयास किया था । उत्तर प्रदेश में पार्टी को मिली करारी हार के बाद जब कुछ
निष्ठावान कांग्रेसी कार्यकर्ता राहुल गांधी से मिलने का प्रयास करते तो राहुल गांधी
के इर्द गिर्द घूमने वाले लोग कार्यकर्ताओं से मिलने नहीं देते और न ही राहुल गांधी
खुद कार्यकर्ताओ से सीधे मिलने में रुचि लेते जिसका परिणाम यह हुआ कि युवा कांग्रेसी
कार्यकर्ताओं का पार्टी से मोह भंग हो गया और पार्टी को अपने हाल पर छोड़ दिया । जिसका
परिणाम यह हुआ कि लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस अपनी लंगोटी तक नहीं बचा सकी ।
ठीक उत्तर प्रदेश के जैसी तस्वीर पिछले
दिनों महाराष्ट्र में भी देखने को मिली । महाराष्ट्र में भी कांग्रेस पार्टी आंतरिक
कलह से जूझ रही थी । बड़े नेताओं की गुटबाजी के कारण कार्यकर्ता इस ऊहा पोह में फंसा
था कि वे किस गुट के साथ जाय लिहाजा कार्यकर्ताओं ने चुप रहने भी भलाई समझी । ऐसा भी
नहीं कि इस बात की जानकारी राहुल गांधी को नहीं थी । नेताओं की गुटबाजी से राहुल गांधी
को कई बार अवगत भी कराया गया । लेकिन हालात वही थे सामान्य कार्यकर्ता को न तो राहुल
गांधी तक पहुँचने दिया जाता और न ही राहुल गांधी ऐसे किसी कार्यक्रम का आयोजन करते
की कोई कार्यकर्ता सीधे अपनी बात उन तक पहुंचा सकता ,लिहाजा यहाँ भी नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के बीच दूरियां बढ़ती
चली गयी और युवा कार्यकर्ताओं का कांग्रेस पार्टी से मोह भंग हो गया जिसका परिणाम कांग्रेस
को हार के रूप में उठाना पड़ा । हार से दुखी कांग्रेसी कार्यकर्ता बड़े नेताओं के साथ
साथ राहुल गांधी के खिलाफ बोलने के लिए तैयार खड़ा है ।
महाराष्ट्र में कांग्रेस को मिली हार
के बाद पार्टी को मजबूत बनाने के लिए कोई ठोस निर्णय अभी तक नहीं लिए गए है इस बात
का पता इसी बात से चलता है कि कांग्रेस ने प्रदेश स्तर पर कोई फेरबदल नहीं किया है
महाराष्ट्र में प्रदेश अध्यक्ष भी वही है और प्रभारी भी वहीं है जिनकी वजह से पार्टी
को बुरे दिन देखना पड़ा । सबसे मजेदार बात तो यह है जो कांग्रेसी नेता मोदी के एक सिपहसालार
के सामने टिक भी नहीं पाते है उन्ही लोगों को संगठन को मजबूत करने की ज़िम्मेदारी फिर
से सौपी गयी है । उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में कांग्रेस
पार्टी को करारी शिकस्त दिलाने के बाद मोहन प्रकाश को मुंबई भेजा गया था । मोहन प्रकाश
इस बात का पता लगाने के लिए आए थे कि अब मुंबई में कांग्रेस को किस तरीके मजबूत किया
जा सकता है ?
मुंबई के कांग्रेसी कार्यकताओं ने
राहुल गांधी के उस निर्णय का विरोध किया जिसमें संगठनात्मक चुनाव कराने की प्रक्रिया
शुरू की गयी थी । अधिकांश कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी में पदाधिकारी
का चुनाव नहीं चयन होना चाहिए । कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का कहना है कि राहुल गांधी
ने अपने हिसाब से जितने भी निर्णय लिए उसमें पार्टी को नुकसान ही हुआ है लेकिन अब राहुल
गांधी को कार्यकर्ताओं की सुननी होगी । हालांकि राहुल गांधी के लिए यह किसी चुनौती
से कम नहीं होगा कि अपने द्वारा लिए गए किस तरीके से बदलेंगे । हालांकि इस समय जो चुनाव
और चयन को लेकर जो विवाद कांग्रेस पार्टी में चल रहा है उसे देखते हुये ऐसा प्रतीत
होता है कि राहुल गांधी के समक्ष संगठन को मजबूत करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा
?